सुख और दुःख का मूल कारण (Root Cause Of Happiness & Saddness In Hindi)

HINDI INSPIRATIONAL STORY

आज के समय में अधिकतर हम सभी लोग दुखी रहते है। ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति हो जो दुखी न हो। हर एक व्यक्ति को किसी-न-किसी का बात का दुःख (sorrow) है ही। लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि दुःख आखिर है क्या? सिर्फ इतना कि जब हमे ख़ुशी (Happiness) की प्राप्ति नहीं होती और कुछ ऐसा काम या कोई ऐसी बात हो जाए तो उससे हमे जो अनुभूति(Feeling) होती है तो उसे हम दुःख का नाम दे देते है।

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तो इसका मतलब की जो हमने सोचा नहीं (we never thought), ऐसी बात जब हो जाए तो दुःख होता है। अब अगर हम हमारी अनुभूति को ही विस्तार में लेकर जाए तो सुख भी तो एक अनुभूति ही है।

मान लेते है मुझे Games खेलने के लिए Best SmartPhone की जरूरत है, अगर मुझे कोई अचानक सबसे बढ़िया मोबाइल तोहफे (Surprise Mobile Gift) में दे दे तो इससे मुझे ख़ुशी की प्राप्ति होगी। इसका मतलब अगर गहराई से सोचा जाए तो मेरी ख़ुशी सिर्फ एक भौतिक वस्तु (material thing) पर निर्भर करती है और तो और इससे मुझे कोई फायदा (Benefit) भी नहीं मिलेगा क्योंकि Games खेलने से आँखें खराब होंगी (eyesight weak) और दूसरी बात अपना कीमती समय (precious time) जिसमे मैं बहुत कुछ सीख सकता था उसे मैं सिर्फ Games खेलने में बर्बाद कर दूंगा। यानी की इससे मुझे नुक्सान ही होगा लेकिन फिर भी मुझे इसमें ख़ुशी को प्राप्ति हो रही है क्योंकि मेरी ख़ुशी Games में है चाहे मुझे इससे नुक्सान (Loss) ही क्यों न हो।

तो अब बात clear हो गयी कि मेरी ख़ुशी सिर्फ भौतिक चीज पर निर्भर (happiness depends on material things) करती है।

अब दुःख की भी बात कर लेते है कि दुःख किस बात पर निर्भर करता है। ऐसी क्या अनुभूति है जो हमे दुःख देती है।

मान लेते है मैं बाजार से ₹200 का एक गुलदस्ता (Bouqet) लाया अपने कमरे में सजाने के लिए और उसी दिन ही ₹50 का एक मटका (Water Pot) ले लिया पानी भरने के लिए।

अब गुलदस्ते में तो फूल (Flowers) थे और 2दिन बाद वह मुरझा (wither) गए लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि मैं जानता था कि फूल है यह तो मुर्झायेंगे ही, पर मटका खरीदने के 4 दिन बाद वह मुझसे गलती से गिरकर टूट गया,तब मुझे बहुत दुःख हुआ कि मेरे 50रूपये व्यर्थ (waste) चले गए और मेरा नुक्सान (Loss Of Money) हो गया।

अब इस बात की गहराई को देखा जाए तो इसमें क्या था? जब गुलदस्ता ख़रीदा तब मैं जानता था कि फूल है मुरझा ही जायेंगे चाहे इनकी कीमत अधिक थी (more costly) लेकिन फिर भी मैंने खरीदा, पर जब मैंने मटका ख़रीदा जिसकी कीमत 50रुपये थी यानी कि गुलदस्ते की कीमत का चौथा हिस्सा (one fourth price) तब मैंने सोचा कि 6महीने या साल तक तो चल ही जाएगा। लेकिन जब वह 4दिनों में ही टूट (break) गया तो मुझे दुःख हुआ।

अब बात फिरसे करते है कि दुःख आखिर है क्या? तो दोस्तों मेरा दुःख सिर्फ मेरी सोच (thoughts) या फिर मेरी इच्छा (wish) पर निर्भर (depend) है और मेरी ख़ुशी भी मेरी सोच या मेरी इच्छा पर निर्भर है। क्योंकि मुझे मालूम था और मेरी सोच थी कि गुलदस्ता एक या दो दिन ही चलेगा और वह मुरझा गया तब मुझे कोई दुःख नहीं हुआ लेकिन मटके वक्त मेरी सोच इससे कही अधिक थी और वह मेरी सोच के अनुसार न चल सका और उससे पहले ही टूट गया और मुझे दुःख हुआ। इसमें मेरी ख़ुशी या मेरे दुःख का relation कीमत से न था बल्कि यह सब मेरी सोच थी।

मेरी जो अनुभूति (Feelings) है वही सुख और दुःख का कारण है, चाहे उसमे वास्तविकता (reality) या फिर यूं कहें उससे मुझे कोई फायदा हो या न हो या फिर नुक्सान ही क्यों न हो, सिर्फ मुझे मेरी सोच तक ही या इससे कुछ अधिक मिल जाए तो वह मुझे ख़ुशी देगी लेकिन अगर कुछ मेरी सोच से कम हो तो वह मुझे दुःख देगा।

अब उपरोक्त लिखा कि चाहे कोई फायदा हो या न हो, और चाहे नुक्सान ही क्यों न हो ,तो ऐसी चीज अगर मेरी सोच से बढ़कर मिल जाए तो ख़ुशी। अब ख़ुशी को एक अच्छे से SmartPhone में Games खेलने से जोड़ा था और Games खेलने से जो नुक्सान होगा वह भी ऊपर बताया तो मैं इस नुक्सान पर भी ध्यान नहीं दे रहा सिर्फ जो मेरी सोच के अंदर या इससे बढ़कर हुआ वही ख़ुशी है। और जो सोच से कम हुआ वही दुःख।

तो दोस्तों अब आप समझ गए होंगे कि सुख और दुःख क्या है? यह असल में वास्तविकता या फिर किसी फायदे या नुक्सान से नहीं बल्कि मेरी सोच से उत्पन्न मेरे भाव है। क्योंकि अगर असल ख़ुशी होती तो वह कभी भी भौतिकता में नहीं होती और न ही असल दुःख कभी भौतिकता में होता है।

 

दोस्तों, यहाँ सुख और दुःख की बात तो हो गई जो सिर्फ हमारी सोच पर निर्भर करती है और यह सिर्फ भौतिक ही सुख-दुख है। अब यह भी जान ले कि आतंरिक सुख और दुःख क्या होता है? इसके बारे में विस्तृत वर्णन की भी Post आप जल्द ही पढ़ेंगे लेकिन इतना जान लीजिए जिस भी किसी काम को करने या किसी काम के होने से आत्मा को ख़ुशी मिले वही असल सुख होता है और जो आत्मा को दुःख मिले वही असल दुःख। ऐसे सुख या दुःख उन्ही को होते है जिनके मन साफ़ होते है और किसी भी तरह का उनमे विकार नहीं होता। वैसे तो ऐसे महात्माओं के लिए सुख और दुःख कुछ भी नहीं, वह सभी प्रकार की स्थिति में समताभाव ही धारण रखते है लेकिन फिर भी उनमे जो हर एक प्राणी के लिए प्रेम होता है,उससे उनको सुख या दुःख की अनुभूति होती है जिसमे उनका कोई भी स्वार्थ नहीं होता। ऐसी ख़ुशी या ऐसा दुःख सीधा आत्मा को भी होता है ,जिसमे स्वार्थ भाव न हो।

(Note: बिना वजह फूल भी नहीं तोड़ने चाहिए न ही ऐसे गुलदस्ते खरीदने चाहिए, क्योंकि सुंदरता नष्ट करने से नहीं बढ़ती बल्कि सँभालने से बढ़ती है। यह सिर्फ एक example के तौर पर बताया गया ताकि यह article आसानी से समझ आ सके।)

तो दोस्तों आपको यह article सुख और दुःख का मूल कारण (Root Cause Of Happiness & Saddness In Hindi) कैसा लगा? अगर आपका इसके बारे में कोई भी सवाल है तो आप comment करके पूछ सकते है।

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