अहिंसक राजा मेघरथ (Ahinsak Raja Meghrath)

जैन धर्म में शांतिनाथ भगवान जी सोलहवें तीर्थंकर हुए है। उनके एक पूर्व भव की बात है जब मेघरथ नाम के वह राजा थे। वह राजा होते हुए भी बहुत ही दयालु, क्षमाशील तथा अहिंसक थे। उनकी दयालुता की चर्चा स्वर्ग में भी थी।  एक बार की बात है स्वर्ग में एक देव दूसरे देव से बात करते हुए मेघरथ का जिक्र करते है की वो बहुत ही दयालु है अपनी प्रजा तथा अपने राज्य क सभी जीव-जंतुओं का वह बहुत अच्छे से पालन-पोषण करते है तथा उनपर किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं आने देते। दूसरे देव को यह बात कुछ हजम नहीं हुयी वह कहते पृथ्वी पर ऐसा कोई प्राणी जन्म ले ही नहीं सकता जो सभी का इतने अच्छे से ख्याल रखता हो और खासतौर पर जीव-जंतुओं का भी। तो उन दोनों देवो ने राजा मेघरथ की परीक्षा लेने की सोची।

वह दोनों देव उनकी परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी पर रूप बदलकर आये। एक देव ने कबूतर का रूप धारण किया तो दूसरे देव ने बाज का।

राजा मेघरथ अपने कक्ष में बैठे थे तभी उड़ता हुआ एक कबूतर उनकी गोद में आकर गिर पड़ा और मनुष्य की आवाज में करुणा भरे शब्दों में बोला – “हे राजन , मुझे अभयदान दो ,मुझे बचाओ”, तब राजा मेघरथ बोले – “तुम निश्चिंत रहो ,यहाँ तुम्हे डरने की कोई जरूरत नहीं, कोई तुम्हे कुछ नहीं कर सकता।” तब उस कबूतर को धैर्य हुआ और वह शांत हो गया। क्षणभर में ही उड़ता हुआ बाज आया और कबूतर को राजा की गोद में बैठा देखकर वह भी मनुष्य की भाषा में बोला,

“महाराज इसे छोड़ दीजिये , यह मेरा भक्ष्य है ,मैं इसे खोजता हुआ ही यहाँ आया हूँ। “

तो राजा ने कहा, “हे बाज तुम्हे यह कबूतर नहीं मिल सकता ,यह मेरी शरण में आया है और शरणागत की रक्षा करना ही राजा का कर्तव्य है। तुम्हे भी ऐसा निन्दित काम नहीं करना चाहिए। किसी भी जीव का भक्षण करना  होता। क्षणिक सुख के लिए तुम जो पाप करने जा रहे हो उसका फल तुम हज़ारो लाखों सालों तक नरक में भोगोगे। किसी भी जीव की हत्या करने से जो पाप लगता है वो तुम सोच भी नहीं सकते। इसलिए अबनी बुद्धि से काम लो और जरा सोचो की जो तुम करने जा रहे हो बाद में उसका क्या परिणाम होगा। राजा थोड़ा रुके और फिर से बोले यदि तुम्हे अपनी भूख मिटानी है तो कोई अन्य भोजन ढूँढो जो निपराध हो और जिससे किसी का बुरा न होने पाये।”

बाज ने राजा से कहा , ” महाराज आप जो भी कह रहे है निसन्देह वह सही होगा लेकिन अभी मैं भूखा हूँ और जब तक किसी की भूख न मिट जाये तब तक वो धर्म कार्य तो दूर उसकी बुद्धि भी काम नहीं करती। यदि यह आपकी शरण में हैं और आप इसको अपनी प्रजा समझकर रक्षा कर रहे है तो मैं भी आपकी ही प्रजा हूँ।  मेरी रक्षा करना भी आपका ही कर्तव्य है ,इस समय मई भूख से विचलित हूँ और यह मेरा भोजन हैं। आप यह कैसा न्याय कर रहे है एक की रक्षा को रक्षा कहकर दूसरे को मृत्यु दे रहे है अगर मैं भूखा रहूंगा तो मैं मर जाऊंगा और यह सब सिर्फ आपकी वजह से होगा। यह कबूतर ही मेरा भोजन है इसलिए कृपया भोजन मुझे दे दीजिये। इस समय मेरे सामने मेरा शिकार सिर्फ यही कबूतर है , आप इसे मुझे दे दीजिये।

राजा ने कहा ,”तुम्हे भोजन ही चाहिए न तो ठीक है तू मांस के अतिरिक्त कुछ भी बता जिससे किसी जीव का बुरा न हो वो मैं तुझे दूंगा, जितना भी जो भी तुम कहोगे।”

बाज ने कहा, “महाराज मैं एक पक्षी हूँ और मेरा जो कर्म है मई उसमे बंधा हुआ हूँ , मेरा भोजन सिर्फ मांस ही है और मैं बस यह ही खाता हूँ, आप मुझे मेरा भोजन दे दीजिये।”

राजा बोले, “ठीक है अगर तुम्हे मांस ही चाहिए तो, तुम मेरे शरीर का मांस खा लो।  इस कबूतर का जितना वजन है उसके बराबर मैं तुम्हे अपने शरीर का मांस देता हूँ। तुम अपनी इच्छा पूरी करो।

बाज ने राजा की बात मान ली। चाकू और तराजू मंगवाया गया। तराजू के एक पल्ले(side) पर कबूतर को बिठाया और दूसरे पल्ले पर राजा ने अपने शरीर का मांस खुद की काटकर रख दिया। लेकिन अभी भी कबूतर भारी था। राजा ने अपने शरीर का थोड़ा और मांस काटकर रख दिया ,लेकिन यह क्या तराजू में कबूतर का पल्ला भारी का भारी ही रहा।

यह सब कुछ देखकर राज्य-परिवार ,राजा के सेवक जितने भी लोग वहा मौजूद थे सभी हाहाकार करने लगे। वह राजा से कहने लगे कि आप क्यों इतना कष्ट झेल रहे हैं सिर्फ एक पक्षी की लिए। बाज को कबूतर दे दीजिये। आपका जीवन अमूल्य है ,आपके बिना हमारा क्या होगा ,यह सारा राज्य आपकी संतान है, हममे से कोई भी आपके बिना नहीं रह सकता ,आप प्रजा का पालन कीजिए।

राजा बोले , यह कबूतर मेरी शरण में आया है ,और शरण में ए हुए की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। मैं इस बाज को बंधी भी बना सकता हू ,लेकिन इस बाज की इस कबूतर से कोई दुश्मनी नहीं है ,यह तो सिर्फ अपने भिजन के लिए इसे मार रहा है क्यूंकि मांस ही इसका भोजन है और कबूतर मेरी शरण में आया है और उसकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। इसलिए कृप्या आप सब मुझे न रोके और मुझे अपना कर्तव्य निभाने दें।

राजा बोल रहे थे की बाज बोला , महाराज मेरे पेट में दर्द हो रहा है। मुझे बहुत भूख लगी है जल्दी कीजिये कही मेरे प्राण ही न उड़ जाये।

राजा ने अब फिर से तीसरी बार अपना मांस काटकर तराजू के पल्ले में रखा लेकिन यह क्या अभी भी कबूतर का पलड़ा ही भारी था। महाराज मेघरथ ने ऐसा कई बार किया लेकिन हमेशा ही कबूतर का पलड़ा ही भारी रहता। अंत में फिर महाराज खुद ही तराजू पर बैठ गए।

जैसे ही महाराज बैठे तभी एक दिव्य रोशनी प्रकट हुयी और महाराज की जय हो, महाराज की जय हो के नारे गूंजने लगे और जो देव कबूतर और बाज के रूप में थे वे अपने असली रूप में आ गए।

सबसे पहले उन देवो ने अपनी दिव्य शक्ति से महाराज को सही किया अब उनका शरीर स्वस्थ हो चूका था और देव बोले धन्य हो महाराज आप,धन्य हो। हमने सिर्फ आपके बारे में सुना ही था लेकिन हमे फिर भी यह लगा की ऐसा कोई व्यक्ति पृथ्वी पर जन्म ले ही नहीं सकता तो इसलिए हमे आपकी परीक्षा लेने की सोची और आपे पास रूप बदलकर चले आये।

महाराज आप सच में धन्य है। मेरी वजह से जो दुःख आपको हुआ उसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ। आप के जैसा सच में कोई नहीं है और आपकी दयालुता, करुणा को शत शत नमन मेरा ,आप अहिंसा के सच्चे पुजारी है और आपने यह साबित कर दिया कि आपकी कर्तव्य परायणता अडिग है और आप जिन धर्म के सच्चे अनुयायी है। देव महाराज को आर्शीवाद देकर और उनकी महानता के लिए उन्हें प्रणाम करके देवलोक वापस लोट गए।

तो यह कहानी थी जो हमें अहिंसा का पाठ पढ़ाती है और सब जीवों में एक ही आत्मा का वास है यह शिक्षा देती है। जो सच्चा होता है और जीवों की भलाई के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना सब कुछ न्यौछावर करने को तत्पर रहता है देव भी उनके आगे मस्तक झुकाते है। मानव शरीर ही है जिसको पाने के लिए देव भी तरसते है उनकी मुक्ति भी तब तक संभव नहीं जब तक वो मानव का शरीर पाकर अपने कर्मो के बंधन को समाप्त नहीं कर देते। हमे अगर मानव का शरीर मिला है तो धन्यवाद करना चाहिए अपने ईश्वर का और इस शरीर को अच्छे कामों में लगाना चाहिए तथा ऐसा प्रयत्न करना चाहिए जिससे किसी भी जीव की अहिंसा न होने पाये।