दान का असली महत्व (Daan Ka Asli Mehtav)

पुराने समय की बात है तब साधु बाबा घर-घर जाकर भिक्षा मांगा करते थे।

एक बार एक साधु-बाबा एक घर पर गए और आवाज लगाई “भिक्षां देहि”….

घर में से पहले तो कोई नहीं बाहर आया। साधु बाबा ने फिर आवाज लगाई, भिक्षां देहि।

इस बार घर के अंदर से एक छोटी लड़की बाहर आई और बोली ,”साधु बाबा ,हम बहुत गरीब है ,हमारे पास देने को कुछ भी नहीं।”

साधु बाबा बोले ,”बेटी, ऐसे मत बोलो ,तुम्हारे पास जो भी है ,जितना-सा भी ही उतना ही दे दो।



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बाबा जी हम बहुत गरीब है ,हमारा खुद का गुजारा बहुत मुश्किल से होता है और कभी कभी हम भूखे ही सो जाते है ,आपको देने के लिए मेरे पास सच में कुछ नहीं ,नहीं तो मैं आपको जरूर दे देती”, लड़की बहुत उदास होकर बोली।”

साधु बाबा ने कहा ,”बेटी ,तुम्हारे घर में जो धूल है वही मुझे दे दो। “

लड़की अंदर गई और थोड़ी-सी धूल उठाकर ले आई और साधु बाबा को दे दी।

साधु बाबा वो धूल लेकर बेटी को आर्शीवाद देकर चल गए।

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कुछ सालों बाद की बात है साधु बाबा भिक्षा मांग रहे थे और वो फिर उसी घर पर आये और कहने लगे ,”भिक्षां देहि”…

वही लड़की घर से बहार आई और साधु बाबा को नमन करती हुयी बोली, “बाबा अंदर आइए ,जो भी चाहिए ले लीजिए।

साधु बाबा बोले ,”बेटी, हम तो साधु है ,हमे जो भी मिल जाए हम उसी में खुश है ,सिर्फ हमे पेट भरने तक से है ,स्वादों से क्या हम जैसे साधुओं को ?

लड़की मन में कुछ सोचते हुए साधु बाबा को बड़े ही ध्यान से देख रही थी और एकदम से बोली ,”बाबा जी,आप वही है न जो कुछ साल पहले हमारे घर पर आये थे और आपने कहा था कि अपने घर की धूल ही दे दो।

साधु बाबा ने “हाँ” में उत्तर दिया।



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लड़की साधु बाबा को कहने लगी ,”बाबा जी जब आप पहले आये थे तब हमारे पास कुछ भी नहीं था ,यहाँ तक की एक दिन की रोटी भी कभी-कभी नसीब नहीं होती थी और उसके बाद से पिता जी का का चलने लग गया क्यूंकि उन्हें रोज काम मिलने लग गया था और कुछ समय बाद अपना काम ही शुरू कर लिया। अब हमारा काम बहुत अच्छा है। आप तब क्या चमत्कार करके गए थे ,कृपया करके बताईये।

साधु बाबा कहने लगे ,”बेटी ,मैंने तो कोई भी चमत्कार नहीं किया ,जो भी किया तुमने ही किया है।

लड़की बोली ,”बाबा जी, मैं कुछ समझी नहीं। “

साधु बाबा बोले ,”बेटी ,जब मैं आया था तब तुम बहुत उदास होकर बोली थी कि तुम्हारे पास देने को कुछ भी नहीं पर तुम्हारा मुझको भिक्षा देने का बहुत मन था और मैंने कहा था कि अपने घर की धूल ही मुझको दे दो। तुमने वह धूल भी सच्चे मन से मुझको दान में दी थी और सच्चे मन से दिया हुआ दान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। उसके बाद जब तुम्हारे घर पर जब भी कुछ न कुछ होता होगा और जब भी कोई दान मांगने आता होगा तो तुम सच्चे मन से दान करती होगी?

लड़की “जी, बाबा जी” बोली।

साधु बाबा ने कहा, “बेटी ,बस यही तो चमत्कार है जो तुमने खुद किया। सच्चे मन  से दिया हुआ दान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता बल्कि हमेशा उससे कई ज्यादा गुना होकर हमे वापिस मिल जाता है। और तुम्हारे मन में कोई भी लालच नहीं रहा कि मैं दान दे रही हूँ ,हमेशा तुम्हारा मन सच्चा रहा इसलिए ही आज तुम्हारे पिता जी का काम काफी अच्छा है।

लड़की, साधु बाबा की बातें सुनने के बाद अंदर गई और रोटी-सब्जी डालकर ले आई और उन्हें प्रणाम किया और साधु बाबा ने भी उसे आर्शीवाद दिया और आगे चल गए।

लड़की दान तो सच्चे दिल से दूसरों की मदद करने के लिए देती थी लेकिन आज उसे दान का असली महत्व पता चला था।

तो मित्रों ,हमे भी हमेशा दान करते रहना चाहिए ,जितना भी हमसे हो सके और दान को कभी भी यह सोचकर नहीं करना चाहिए की इसके बदले में हमे क्या मिलेगा। अगर आपका दान निष्काम भावना से किया हुआ है तो आपको उसका फल अवश्य ही मिलेगा और सच्चे मन से दान देकर हमेशा आनंद का अनुभव करेंगे।

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