guru ke bina gyan prapat nahi ho sakta

गुरु बिन ज्ञान नहीं

guru ke bina gyan prapat nahi ho sakta

गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।

अर्थ: गुरु के बिना ज्ञान नहीं उपजता, गुरु के बिना मोक्ष भी नहीं मिलती। गुरु बिना सत्य की पहचान भी नहीं होती और नहीं ही हम में से किसी प्रकार का दोष मिटता है।

गहरा भाव: अपनी इन पंक्तियों में कबीर जी गुरु का महत्व बताते हुए कह रहे है कि अगर किसी के पास गुरु नहीं है तो उसे ज्ञान की प्राप्ति हो ही नहीं सकती, गुरु ही है जो अज्ञान को दूर करके हमे ज्ञान के दर्शन करवाते है और गुरु के बिना तो मोक्ष भी प्राप्त नहीं हो सकता क्यूंकि मोक्ष प्राप्ति के लिए भी उसे प्राप्त करने का ज्ञान चाहिए होता है, अगर गुरु ही नही होंगे तो ज्ञान भी कैसे प्राप्त होगा?

गुरु के बिना सत्य और असत्य के भेद का भी ज्ञान नहीं होता। जब तक सत्य और असत्य में फर्क ही नहीं पता, तबतक फिर हमारे अंदर के दोष भी नहीं मिट सकते क्यूंकि हम में इतनी चेतना ही नहीं है कि हम सत्य को पहचानकर मोक्ष तक को प्राप्त कर सके।

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गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान॥

अर्थ: गुरु के समान अन्य कोई दाता (देने वाला) नहीं है और जो भी याचक है वह शिष्य समान ही है। तीनों लोकों कि सम्पत्ति गुरु निसंदेह दान में दे देते है।

गहरा भाव: गुरु के सिवा अन्य कोई भी नहीं जो हमे निस्वार्थ कुछ दे सके और शिष्य के समान कोई याचक नहीं है, यहाँ पर कबीर जी शिष्य का महत्व भी बता रहे है और उसका फर्ज भी कि शिष्य के समान कोई और मांगने वाला भी नहीं है यानी कि जब सुशिष्य को अच्छा गुरु प्राप्त हो गया तो उसे अपने गुरु पर पूर्ण विशवास रखना चाहिए और गुरु से ज्ञान को ऐसे मांगना चाहिए जैसे कोई याचक दाता से मांगता है, इसीलिए यहाँ पर गुरु को दाता और शिष्य को याचक कहकर सम्बोधित किया गया है।

गुरु अपने तप/पाठ द्वारा जो भी ज्ञान अर्जित करते है वह तीनों लोकों की किसी भी सम्पदा से कही अधिक मूल्यवान है और गुरु ऐसी मूल्यावान सम्पदा निस्वार्थ शिष्य को दान में दे देते है।

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दोस्तों यह उपरोक्त कुछ दोहे थे जो कबीर जी से गुरु के महत्व को बताते हुए कहे थे और उसका गहरा भाव समझकर वर्णन करने का प्रयास किया गया है, आपको यह गहरा भाव कैसा लगा हमे कमेंट करके जरूर बताये।

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