एक बार राजा श्रेणिक ने राज-दरबार में बैठे हुए सामंतों पर प्रशन भरी नजर डालते हुए पूछा ,”राजगृह में सबसे सस्ती और सुलभ ऐसी कौन-सी खाद्य वस्तु  जिससे साधारण से साधारण मनुष्य भी अपनी भूख मिटा सके ?”

सभी
सामंत राजा का प्रशन सुनकर सोच में पड़ गए। वह सोचने लगे कि सबसे सस्ता
अन्न है ,लेकिन फिर सोचा कि अन्न कैसे सबसे सस्ता हो सकता है? किसान अपना
खून-पसीना एक कर देता है थोड़े से अन्न के लिए और इन्तजार भी इतना करना पड़ता
है अन्न के उगने में।

महाराज ने फिर से अपना प्रशन दोहराया।

फिर एक सामंत ने कहा कि महाराज सबसे सस्ता मांस है। जिसे मनुष्य बहुत ही सरलता से प्राप्त कर सकता है।

शिकार के शौकीन कुछ और सामंतो ने भी उस सामंत की हाँ में हाँ मिलाते हुए कह दिया कि मांस ही सबसे सस्ता और सुलभ है।  इसे मनुष्य जब चाहे तब प्राप्त कर सकता है। जंगल में जाओ और जितने मर्जी जानवरों , पक्षियों का शिकार कर लो। न ही कोई मेहनत करने की आवश्यकता और न ही किसी प्रकार का खर्चा।

महामंत्री अभयकुमार के इलावा सभी सामंत सहमत थे कि मांस ही सबसे सस्ता और सुलभ  खाद्य पदार्थ है।

महामंत्री को मौन देखकर  महाराज ने पूछा कि क्या हुआ अभयकुमार तुम क्यों नहीं कुछ बोलते ?

अभयकुमार बोले ,”महाराज, यह प्रशन इतना सरल नहीं है।  मुझे सोचने के लिए कुछ समय चाहिए ,मैं आपको इसका जवाब कल दूंगा।”



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अभयकुमार घर आकर सोचने लगे ,”मनुष्य का मन कितना विचित्र है, हर कोई मनुष्य मृत्यु से डरता है और अपने प्राण बचाने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहता है, तो फिर उसे दूसरों की जान की क्यों कोई परवाह नहीं? क्या इन दुर्बल जीवों का जन्म मनुष्य के मनोरंजन के लिए हुआ है कि वो इनकी जान से खेल सके? आखिर इन जीवों में भी आत्मा का वास है। क्या इनके प्राण इतने सस्ते है कि कोई भी इनसे खेल सके?”अभयकुमार गहरी सोच में डूब गए और सोचने लगे कि जब तक लोग अपने प्राणों के समान ही दुसरो के प्राणो का मूल्य नहीं समझेंगे तब तक यह अज्ञानता में ही रहेंगे। यह सब सोचते सोचते रात हो चुकी थी।

अभयकुमार को एक युक्ति सूझी। उन्होंने रात को ही सभी के घर जाकर उन्हें प्राणों की कीमत समझाने का सोचा।

महामंत्री अभयकुमार सर्वप्रथम उस सामंत के घर गए जिन्होंने सबसे पहले कहा था की मांस ही सबसे सस्ता और सुलभ आहार है।

अभयकुमार ने उनका दरवाजा खटखटाया और सामंत ने जब बाहर आकर देखा तो बोले ,”आईये महामंत्री जी ,इतनी रात को क्या बात हो गयी ?” सामंत जरा घबराकर बोला क्यूंकि रात बहुत हो चुकी थी।

अभयकुमार चिंतित से दिख रहे थे और हांफ भी रहे थे। अभयकुमार बोले ,”महाराज को अचानक ही भयंकर रोग ने आकर घेरा है और उनकी जान खतरे में है। कोई भी उपचार और औषधि काम नहीं कर रही। वैद्यो का कहना है कि महाराज को बचाने के लिए किसी स्वस्थ व्यक्ति के हृदय का दो तोले मांस चाहिए। इसके बदले में जितनी चाहो उतनी स्वर्ण मुद्राएँ ले लीजिये। बस अपने हृदय का दो तोले मांस दे दीजिये।

सामंत सोचने लगा की जब प्राण ही नहीं रहेंगे तो फिर धन-दौलत का क्या करूंगा। वह महामंत्री को एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ पकड़ाते हुए बोले कि यह लीजिये एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ और जो इतनी मुद्राएँ लेकर अपना मांस देता हो उससे ले लीजिये ,कृपया मुझे जीवन दान दे दीजिये।

सामंत के इतना गिड़गिड़ाने के बाद अभयकुमार आगे चल दिए और एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ अपने महल भिजवा दी।

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सभा में जितने भी लोगों ने इस बात का समर्थन किया था, अभयकुमार उन सबके पास जाते रहे और उनसे यह ही कहते रहे कि महाराज के प्राण संकट में है कृपया दो तोले अपने हृदय का मांस देकर उनकी रक्षा कीजिये। सबने मांस देने से मना कर दिया ,ऐसा कोई भी वीर नहीं था जो यह कह सके कि मेरे हृदय का मांस लेकर महाराज के प्राणो को बचा लीजिये। उन सब में से किसी ने लाख ,किसी ने पांच लाख तो किसी ने करोड़ो स्वर्ण मुद्राएँ देकर भी कहा कि आप हमे जीवन दान दीजिये और इन मुद्राओं के बदले किसी और से मांस ले लीजिये।

प्रातः काल सभी अभयकुमार का सभा में इन्तजार कर रहे थे क्यूंकि सभी को महामंत्री के जवाब की प्रतीक्षा थी। सभी सामंत महाराज को स्वस्थ देखकर आश्चर्यचकित थे कि वो इतनी जल्दी स्वस्थ भी हो गए और प्रसन्न भी थे कि उनकी जान भी बच गयी और महाराज भी स्वस्थ है।

अभयकुमार जब राज-सभा में आये तो महाराज को अभिवादन करने के बाद बोले ,”महाराज कल आपने पूछा था कि सबसे सस्ती चीज क्या है और हमारे वीर सामंतो ने ‘मांस’ को सबसे सस्ता और सबसे सुलभ बताया था। महाराज को वह सभी करोड़ो की स्वर्ण मुद्राएँ जो महामंत्री को सभी ने दी थी सिर्फ दो तोले मांस के लिए ,उन्हें महाराज को देते हुए बोले ,”महाराज यह है दो तोले मांस की कीमत लेकिन फिर भी दो तोले मांस न मिल सका।”

महाराज अभयकुमार की बात नहीं समझे और पूछा की क्या कह रहे हो ?

अभयकुमार बोले ,”महाराज क्षमा कीजियेगा ,लेकिन कल मैं सभी सामंतो के घर गया और उनको कहा कि आपकी सेहत सही नहीं है और वैद्यो ने उपचार के लिए स्वस्थ व्यक्ति के हृदय का दो तोले मांस मंगवाया है।”  अभयकुमार आगे कहने लगे ,”महाराज मैं सभी सामंतो के पास गया लेकिन किसी ने भी अपना मांस देने से मना कर दिया और उसके बदले में मुझे किसी ने लाख ,किसी ने पांच लाख तो किसी ने करोड़ो स्वर्ण मुद्राएँ दी और कहा कि उनको जीवन दान दे दूँ और किसी और से इतनी मुद्राओं में उसका मांस ले लूँ। लेकिन मांस किसी ने नहीं दिया।”

सभा में सन्नाटा छा गया।

अभयकुमार सभी को कहने लगे ,”प्राणों का मूल्य लाखों ,करोड़ो स्वर्ण मुद्राओं से भी नहीं चुकाया जा सकता। सभी को अपने प्राण प्रिय होते है और उसे बचाने के लिए कुछ भी त्यागने को तैयार है।” अभयकुमार आगे कहने लगे ,”कल आप शिकार की बातें कर रहे थे ,लेकिन क्या आपने सोचा है कि उन जीवों मे भी जान है। उन जीवो ने आपका क्या बिगाड़ा है जो आपको उनकी जान लेकर ख़ुशी मिलती है। जो मूल्य आपकी जान का है, वही मूल्य उनकी जान का भी है। आप सब सिर्फ अपने आनंद के लिए और जीव्हा के स्वाद के लिए उन बेकसूर और बेजुबान जानवरों की हत्या कर देते है। हम लोग जो मूल्य अपने प्राणों का आंकते है वही मूल्य किसी दूसरे के प्राणों का क्यों नहीं आंकते ? क्या सिर्फ इसलिए कि वो बोल नहीं सकते और अपनी रक्षा नहीं कर सकते। लेकिन इससे भी उनके प्राणों का मूल्य कम नहीं हो जाता। जब मनुष्य किसी दूसरे के मांस का मूल्य भी अपने मांस के मूल्य की ही तरह सोचेगा तभी मनुष्य जान सकता है कि मांस का असल मूल्य क्या हो सकता है। मांस का कोई मूल्य नहीं है ,मांस अमूल्य है। मनुष्य दुनिया की सारी धन दौलत खर्च करके भी अपने प्राणों को दुबारा नहीं हासिल कर सकता।”

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यह सब सुनकर सभी सामंतो की नजरे निचे झुक गयी । उनके विचारो में गहरी उथल-पुथल मची हुयी थी क्यूंकि अभयकुमार ने अब उनकी सोच बदल दी थी। सभी को अब सच का बोध हो गया था और उन्होंने अभयकुमार से माफ़ी मांगी।

अभयकुमार बोले ,”मैं कौन होता हूँ आपको माफ़ करने वाला ,आपने बेजुबान जीवों की हत्या की है ,अब आप अपने आगे का सोचिये और शाकाहारी बन जाइए। शाकाहारी आहार ही सबसे उत्तम होता है। अगर मनुष्य मेहनत करे तो सब कुछ ही सुलभ है। पेड़ लगाओ ,शाकाहारी खाओ और स्वस्थ रहो। “

अहिंसा परमोधर्मः 

Nikhil Jain

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