रानी लक्ष्मीबाई जीवनी(Biography of Rani Laxmi Bai)

इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसी स्त्री की कहानी हमें मिलती है, जिसने अपनी प्रतिभा से यह साबित कर दिया था कि जो पुरुष कर सकते हैं वह कार्य स्त्रियां भी कर सकती हैं।
रानी लक्ष्मीबाई की बात आने पर हम अपने बचपन में चले जाते हैं और सुभद्रा कुमारी चौहान कि वह पंक्तियां हमें याद आ जाती है:-
“खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।”
पंक्तियां हमें यह सिखाती थी कि स्त्रियां अगर कुछ करने का ठान ले तो वह करके ही रहती है। रानी लक्ष्मीबाई स्वतंत्र भारत की रचना करने में अहम भूमिका निभाने वाली स्त्री की तरह पहचानी जाती है, जिनमें तेज मां दुर्गा जैसी और क्रोध मां काली जैसी थी।

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जन्म:-

19 नवंबर 1828 को वाराणसी में नारी शक्ति का लोहा मनवाने वाली लक्ष्मीबाई जी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम था मणिकर्णिका। नाम बड़े होने के कारण उनको उनके परिवार वाले प्यार से मनु बोलकर बुलाने लगे और आज पूरी दुनिया उनको रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जानती है। जब रानी लक्ष्मीबाई छोटी थी तो उनके चुलबुले व्यवहार के कारण वह अपने परिवार मे सबके लिए प्रिय थी।

माता की मृत्यु:-

रानी लक्ष्मीबाई बस 4 साल की थी तभी उनकी माता का देहांत हो गया था यानी एक छोटी सी बच्ची के सर से मां का आंचल हट चुका था। रानी लक्ष्मीबाई ये सब समझ सके इसके लिए वह बहुत छोटी थी।

पिता का प्यार:-

रानी लक्ष्मीबाई की जीवन से मां का साया उठने के बाद उनके पिता ने ही उनकी माता के साथ-साथ उनके पिता की भूमिका निभाई तथा उनका पालन पोषण किया एवं शिक्षा दी। यह सब करना आसान तो नहीं था पर वह कहते हैं ना एक कामयाब पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है और एक कामयाबी स्त्री के पीछे एक कामयाब सोच वाले पुरुष का हाथ होता है। रानी लक्ष्मीबाई के पिता ही थे जिन्होंने उन्हें इतना काबिल बनाया। आज पूरा विश्व उन्हें नारी शक्ति का लोहा मनवाने वाली के रूप में जानती है। पिता के साथ ने और लक्ष्मी बाई की विश्वास ने यह साबित कर दिया कि हां स्त्रियां भी सब कुछ कर सकती है तथा वह पुरुषों से कम नहीं। ठान ले जो स्त्रियां कुछ करने का, वह कर के ही रहती हैं।

हुनर पर ध्यान:-

रानी लक्ष्मीबाई जी के पिता को यह पहले ही पता चल गया था कि उनकी बेटी का हुनर कितना आगे जा सकता है। इसीलिए उन्होंने अपनी बेटी का लालन-पालन बिल्कुल एक बेटे जैसा किया। जिम्मेदारियों को संभाला और शिक्षा देने के साथ-साथ युद्ध कौशल का पाठ भी पढ़ाया जिससे उनकी बेटी हर दिशा से सर्वश्रेष्ठ बने चाहे वह बुद्धि से हो या युक्ति से या युद्ध क्षमता से।

बेटे की चाह:-

रानी लक्ष्मीबाई जी के पिता पहले एक पुत्र चाहते थे ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके परंतु जब रानी लक्ष्मीबाई जी का जन्म हुआ तभी उनके पिता ने यह सोच लिया था कि उनका लालन पालन ही वे एक बेटे की तरह करेंगे और उन्होंने किया भी। वह जो शिक्षा देते गए रानी लक्ष्मीबाई वह बिना रुके सीखती गई और एक कुशल योद्धा बनती गई। उनका अधिकतर समय रणभूमि में युद्ध करते हुए बीतता था तथा वह पुरुषों के सामने युद्ध करने से भी नहीं डरती थी बल्कि पुरुषों के भांति प्रहार करती थी। जो चाह रानी लक्ष्मीबाई जी के पिता के मन में थी वह सब रानी लक्ष्मीबाई जी ने पुत्र नहीं पुत्री बन कर पूरा दिया।

उनकी गहरी मित्रता:-

रानी लक्ष्मीबाई जी की गहरी मित्रता नानासाहेब और तात्या टोपे से थी। कहा जाता है कि जब रानी लक्ष्मीबाई जी ने देश को आजादी दिलाने के लिए पहला युद्ध लड़ा था तब उनके यह गहरे मित्र उनके कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध में भाग लिया था।

विवाहित जीवन:-

रानी लक्ष्मीबाई 13 या 14 साल की होगी जब उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव जी से हो गई। विवाह के बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई थी परंतु दर्द का बादल ऐसा फूटा कि 4 महीने बाद दर्द कि वह बारिश हुई जिसमें रानी लक्ष्मीबाई जी ने अपने पुत्र को खो दिया। वारिस के चले जाने के कारण राज्य में हाहाकार मच गया था क्योंकि अगर कोई दूसरा वारिस ना सामने आया अंग्रेजी हुकूमत पूरे झांसी पर अपना कब्जा जमा लेगा। इसी से बचने के लिए गंगाधर राव जी ने एक बच्चे को गोद ले लिया तथा उसका नाम रख दिया दामोदर राव पर दुख की बारिश अभी रुकी नहीं थी। पुत्र के नामकरण के बाद अगले दिन ही गंगाधर राव जी ने शरीर छोड़ दिया। वर्षा अभी रुकी नहीं थी कि अंग्रेजी हुकूमत ने रानी लक्ष्मीबाई को गद्दी से हटाकर उन्हें झांसी छोड़ने का आदेश दे दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने हार नहीं मानी और जब अंग्रेजी हुकूमत के कुछ लोग उन्हें झांसी से हटाने का फरमान लेकर आए तो उन्होंने साफ-साफ उन लोगों से कह दिया “मैं अपनी झांसी नहीं छोडूंगी”।

झांसी के लिए युद्ध:-

जनवरी 1858 को अंग्रेजी हुकूमत ने झांसी पर हमला कर दिया अपनी झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई जी ने अपने सैनिकों के साथ जंग में उतर कर अंग्रेजी हुकूमत से दो-दो हाथ किया रानी लक्ष्मीबाई एवं उनके सैनिकों के जोश के आगे अंग्रेजी हुकूमत बार-बार हार जाती पर वह जितनी बार वापस लड़ने आती दुगनी शक्ति जुटाकर आते। इस कारण झांसी के योद्धा लड़ते-लड़ते थक गए और अप्रैल 1858 को अंग्रेजी हुकूमत ने झांसी पर अपनी जीत हासिल कर ली और उस पर कब्जा जमा लिया। इन सबके बीच रानी लक्ष्मीबाई आपने कुछ महत्वपूर्ण लोगों के साथ जिन पर वह भरोसा करती थी किले से छुपकर निकल गई।

ग्वालियर पर जीत:-

रानी लक्ष्मीबाई अपने सैनिकों के साथ जब झांसी के किले से छुपते छुपाते निकल गई तो सीधा उन्होंने ग्वालियर पर हमला कर दिया। ग्वालियर उस समय अंग्रेजों का एक ऐसा स्थान माना जाता था जो उनके लिए सब कुछ था और जब रानी लक्ष्मीबाई ने उस पर कब्जा कर लिया तो अंग्रेजी हुकूमत घबरा गई और उन्होंने भी हमला कर दिया। उस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने वज्र की भांति अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया और सैकड़ों अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। युद्ध का दूसरा दिन था ही की अंग्रेजी हुकूमत के सैनिक रानी लक्ष्मीबाई के सैनिकों पर भारी पड़ने लगे परंतु फिर भी रानी लक्ष्मीबाई ने हार ना मान कर जंग जारी रखा। लड़ते-लड़ते वह एक ऐसे स्थान पर पहुंच गई जहां का नाला बहुत ही बड़ा था जिसको उनका घोड़ा पार नहीं कर पा रहा था तथा हजारों अंग्रेजी सैनिक रानी लक्ष्मीबाई जी पर हमला कर रहे थे। रानी लक्ष्मीबाई ने सोच रखा था मैं अगर मर भी जाऊं तो भी अंग्रेजी हुकूमत मेरे शरीर को हाथ ना लगा सके इसलिए अधमरी स्थिति में भी उन्होंने भद्रकाली बनकर उन हजारों सैनिकों को अकेले मृत्यु तक पहुंचाया और उस नाले के पास ही एक बुद्ध व्यक्ति की कुटिया थी; वहां जाकर उन्होंने विनती की कि मुझे तुरंत जला दे ताकि अंग्रेजी हुकूमत के एक भी सैनिक मेरे शरीर को छू न सके मुझ पर कृपा करें और मेरे शरीर को जला दे।

उनकी मृत्यु:-

18 जून 1858 को नारी शक्ति का लोहा मनवाने वाली रानी लक्ष्मीबाई ने शरीर छोड़ दिया, और वह वीरगति को प्राप्त हुई

सीख:-

रानी लक्ष्मीबाई जी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है क्योंकि वह एक ऐसी स्त्री थी जो अगर कुछ कर लेने का ठान लेती थी तो वह उसे करके रहती थी। आज हम सभी युवाओं को भी उनसे यही सीख लेनी चाहिए कि मन में कुछ पाने की सच्ची चाह के साथ कभी ना रुकने वाली मेहनत को अगर हम लगाएं किसी काम पर तो मन जो चाहे वह हम प्राप्त कर सकते हैं। उनकी तरह हार ना मानने वाली भावना जो कभी रुकती नहीं थी जीत तक पहुंचने तक,उसी प्रकार हमें भी मंजिल जब तक ना पा ले तब तक हर न मानकर लड़ते रहना चाहिए।
खुद ही को समस्याओं से लड़कर कितना बड़ा बना लो की समस्या तुम्हारी पैर की धूल की तरह बन जाए जिसे तुम रौंदकर सफलता को प्राप्त कर लो।
जो यह कर पाते हैं रानी लक्ष्मीबाई जैसा बन जाते हैं।

धन्यवाद।