रामकृष्ण परमहंस जीवनी (Ram Krishna Paramhans Biography in Hindi)

हमारे मनुष्य जीवन में भक्ति से बड़ा कोई कार्य नहीं। सभी मनुष्य की भक्ति में प्रभु से मिलने की इच्छा ही होती है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्हें भगवान के साक्षात दर्शन भी हुए हैं, पर वह बस दर्शन मात्र ही था क्योंकि वह भक्त भक्ति की अभिलाषा से नहीं कुछ पाने की लालसा से भगवान को याद करता था। जहां एक और अगर ऐसे भक्त हैं तो दूसरी और एक ऐसा भक्त है जो कुछ ना पाने की चाह लिए हुए अपने मन में बस भक्ति में ही लीन रहता और उसके जितना भाग्य शायद ही किसी का हो, क्योंकि उसने अपने हाथों से किसी और को नहीं भगवान को भोजन कराया है। इससे बड़ा भाग्य, इससे अच्छा कर्म, इससे अच्छा जीवन और इससे अच्छा आनंद क्या ही हो।

मनुष्य जीवन की सभी अभिलाषा से ऊपर उठकर वह जो शांति है, जिसे हम मोक्ष कहते हैं, उस महापुरुष ने जीते जी ही उस असीम शांति को महसूस किया था। वह और कोई नहीं रामकृष्ण परमहंस थे जिन्होंने अपने जीवन काल में ही उस आनंद की प्राप्ति कर ली थी जिसके लिए लोग या तो सैकड़ों वर्ष की तपस्या करते हैं या तो अच्छे कर्म करते हैं और पता नहीं क्या-क्या, पर उन्होंने अपने उसी जीवन में अपने शरीर को बिना किसी चाहत का बना लिया जिससे उन्होंने अपने जीवन जीते हुए ही मोक्ष की प्राप्ति कर ली थी, और तो और अपने हाथों से मां काली को भोजन कराया था जैसा हम सभी जानते हैं। महाकाली अपने रूद्र अवतार और क्रोध से जानी जाती है, परंतु वह भी तो मां है। यह बात हमें रामकृष्ण परमहंस जी के कारण पता चली क्योंकि यह बात सभी जानते हैं कि वह अपने हाथों से मां को भोजन कराते थे, और उन्होंने पता नहीं मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान किन रूपों में हमारे सामने रखा जिससे हमें यह पता चलता है कि वह बस एक पुरुष नहीं मनुष्य रूप में नारायण थे जिन्होंने मानवता को मानव बनना सिखाना चाहा और बहुत अच्छा पाठ पढ़ा कर चले गए।

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जन्म:-

रामकृष्ण परमहंस जी का जन्म 18 फरवरी 1836 को कमरपुकुर में हुआ था, जो कि बंगाल में है। गदाधर उनका बचपन का नाम था। उनकी माता का नाम चंद्रा देवी था और पिताजी का नाम खुदीराम था। रामकृष्ण परमहंस जी के जन्म को लेकर उनके भक्त यह बताते हैं कि उनके जन्म से पहले ही उनके माता-पिता को कुछ अलौकिक शक्ति का अनुभव होता था एवं उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार की घटनाएं देखने को मिलती थी जिससे उन्हें आलोक शक्ति का बोध होता था। यानी कि उनके भक्तों के अनुसार उनके माता-पिता उन्हें बताते हैं कि उनके पुत्र यानी गदाधर भगवान विष्णु के अवतार हैं। और यह बात गदाधर जी के माता पिता स्वयं उनके शिष्यों को यह बताते हुए बोलते हैं कि “एक बार स्वयं भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उनसे कहा था कि एक समय के बाद मैं खुद आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा और मानवता को मानवता का सही ज्ञान दूंगा जिससे वह आध्यात्मिकता का सही ज्ञान ले पाएंगे। इन कार्यों के लिए मुझे अवतार लेना होगा इसलिए मैं आपके पुत्र के रूप में धरती पर आऊंगा।” यह बात उनके भक्तों ने रामकृष्ण परमहंस के माता पिता से पता की थी। रामकृष्ण परमहंस के माता भी उनसे यह कहती थी कि जब वह शिव मंदिर गई थी तो उन्होंने एक दिव्य रोशनी को उनके गर्भ में समाते हुए देखा था। इन सभी बातों से यह पता चलता है कि भगवान रामकृष्ण परमहंस एक मनुष्य ही नहीं बल्कि एक अवतार थे जो आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाने आए थे।

परिवार:-

पारिवारिक जीवन की बात की जाए तो रामकृष्ण परमहंस जी के सर से बस 7 वर्ष की आयु में ही पिता का साया हट चुका था, अर्थात एक छोटा सा बच्चा जिसके सर से पिता का साया बहुत ही कम उम्र में ही हट चुका था। पिता का साया सर पर से हटने के बाद उनका जीवन उनकी माता के साथ बहुत ही दयनीय परिस्थितियों से गुजरा। कई प्रकार की आर्थिक समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ा। भोजन प्रबंध करने मे तथा रहने के स्थान के लिए भी उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा, परंतु इन सबके बाद भी रामकृष्ण परमहंस जी की हिम्मत में 1 प्रतिशत की भी कमी नहीं हुई। वे अपने बड़े भाई राजकुमार जो कोलकाता में पाठशाला के संचालक थे, उनके पास आ गए। परमहंस जी के भाई के बारे में बात करे तो उनका चरित्र बहुत ही निर्मल भाव का था और वह एक ऐसे व्यक्ति थे जो अन्य कार्यों पर ध्यान ना देकर अपने काम पर ही ध्यान रखते थे अर्थात अन्य अनावश्यक चीजों में ध्यान नहीं देते थे। इसके बाद ही रामकृष्ण परमहंस जी के जीवन में आर्थिक स्थिति की सभी समस्याओं से दूरी हो गई।

कार्य की खोज:

रामकृष्ण परमहंस जी को किसी भी कार्य में इच्छा नहीं थी इस कारण से वह जिस भी कार्य में जाते वह कार्य उनसे छूट ही जाता था। एक समय जब रामकृष्ण परमहंस के भाई को दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी बनने का मौका मिला यानी उन्हें पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था तो उनके भाई वहां गए पुजारी के रूप में और उनके भाई की सहायता उनका भांजा करता था एवं इस भांजे के साथ रामकृष्ण परमहंस भी अपने भाई की पूजा की सारी विधियों में सहायता करते थे। कुछ दिनों में रामकृष्ण परमहंस जी को यह कार्य अच्छा लगने लगा था और तो अब कुछ ही दिनों में रामकृष्ण परमहंस जी को देवी को सजाने का कार्य मिल गया था।

पुरोहित के रूप में नियुक्ति:-

अपने भाई के साथ रामकृष्ण परमहंस जी जब दक्षिणेश्वर काली मंदिर में कार्य कर रहे थे तो 1 दिन अचानक उनके भाई की मृत्यु हो जाती है जिसके कारणवश रामकृष्ण परमहंस जी को उस मंदिर के पुरोहित के रूप में नियुक्त कर लिया जाता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नए पुरोहित के रूप में, नए पुजारी के रूप में रामकृष्ण परमहंस जी अपने भाई के बाद इस कार्य में लग गए थे और इस कार्य में उन्हें बहुत रूचि के साथ-साथ आनंद भी आ रहा था।

ध्यान मग्न होना:-

अपने भाई की मृत्यु के बाद रामकृष्ण परमहंस जी अपने जीवन के अधिकतम समय ध्यान में मग्न होकर रहने लगे, परिणाम स्वरूप मां की मूर्ति को ही अपनी मां और जगत यानी इस पूरे ब्रह्मांड की मां मानने लगे और उनकी पूजा में, उनकी भक्ति में लीन रहने लगे। इसके सिवा और कोई काम उनके मन में नहीं आता था। उनकी भक्ति इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि मां काली उन्हें साक्षात दर्शन देने लगी थी और जब रामकृष्ण परमहंस जी में मां काली को सबसे पहली बार देखा था तो उनके लिए वह पल ऐसा था मानो जैसे पूरा संसार, घर, द्वार, मंदिर, लोग, जीव-जंतु सभी गायब हो गए हो और उनके सामने ब्रह्मांड की माता आ गई है। रामकृष्ण परमहंस जी स्वयं यह बताते हैं कि उनके लिए भी यह आसान नहीं था कि काली मां को एक बार में ही एक ही नजर में देख लेना क्योंकि उनके शरीर से आता तेज इतनी तीव्र गति से आंखों में चुभती थी जिसे ना मनुष्य न पशु-पक्षी या कोई और ही देख सकता था। उनकी झलक पाने के लिए आंखों में वह सहन करने की शक्ति होनी चाहिए जिससे आप ब्रह्मांड की सबसे शक्तिशाली तेज झेल सकते हैं। रामकृष्ण परमहंस जी बताते हैं कि प्रथम बार में वह असफल थे मां काली के उस रूप को देख पाने में, परंतु फिर ध्यान में आकर सारी शक्तियों को एकत्रित कर उन्होंने मां काली का दर्शन अपनी आंखों से किया था। इसके बाद उनका जीवन पूर्ण रूप से बदल गया था। वह आध्यात्मिकता के राह पर चलते चलते उस स्थान पर पहुंच गए थे जहां तक पहुंचना एक आम व्यक्ति के लिए असंभव ही नहीं सोचा भी नहीं जा सकता था।

उनका विवाह:-

मां की भक्ति में लीन रह-रहकर रामकृष्ण परमहंस जी की स्थिति ऐसी हो गई थी जैसे मानो शरीर तो है पर आत्मा नहीं। कई प्रकार के अफवाह उड़ने लगे दक्षिणेश्वर काली मंदिर में कि वहां के पुजारी रामकृष्ण परमहंस जी मानसिक संतुलन खो चुके हैं। अब वह पागल हो चुके हैं। उनकी मानसिक स्थिति सही नहीं है, क्योंकि उन्हें सचमुच में काली मां नजर आती थी। वे इस बात को समझने के स्थान पर मजाक में परिवर्तन कर देते थे। इन्हीं कारणों के कारण रामकृष्ण परमहंस जी की माता चाहती थी कि वह उनका विवाह करा दे ताकि उन सभी मानसिक समस्याओं से दूर हट कर रामकृष्ण परमहंस जी एक मानवीय जीवन और एक वैवाहिक जीवन में बंध कर ठीक रहे। उनका मानना था कि विवाह के बंधन में बंधकर उसके जिम्मेदारियों को उठाकर मेरा बेटा ठीक हो जाएगा और एक खुशहाल जीवन व्यतीत करेगा। और इन सब के कारण वे मां के अनुसार आध्यात्मिकता के उस राह पर से हट जाएगा जिस पर वह चल रहा है। जब यह सब बात रामकृष्ण परमहंस जी को पता चला तो उन्होंने खुद अपनी मां से यह कहा कि आप इस दक्षिणेश्वर काली मंदिर से 3 मिल दूर जाकर कन्या को खोज सकते हो वहां के मुखर्जी जी के घर में आपको आपकी पुत्रवधू मिल जाएगी, जैसा उन्होंने कहा था वैसा ही ठीक 4 वर्ष बाद उनकी माता उसी घर पर एक कन्या को जो उनकी पुत्रवधू बनने के लायक थी पा लेती है और रामकृष्ण परमहंस जी और शारदा जी का विवाह करा दिया जाता है। चूंकि मां शारदा उम्र में बहुत छोटी थी इसीलिए विवाह के बाद जब वह पूर्ण रूप से बड़ी हो गई थी अर्थात 18 वर्ष की हो गई तब उन्हें रामकृष्ण परमहंस जी का संपूर्ण साथ मिला। कहा तो यह भी जाता था कि रामकृष्ण परमहंस जी उस समय भी सन्यासी जीवन जीते थे।

उनका नाम:-

ऐसा माना जाता है कि रामकृष्ण परमहंस उनका यह नाम उनके सन्यासी जीवन को धारण करने के कारण मिला था क्योंकि उनका नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। यह उनके कर्म ही थे जिन्होंने उन्हें श्री रामकृष्ण परमहंस के नाम से सभी लोग जानने लगी थे।

काली मां को भोजन कराना:-

ऐसी मान्यताएं भी है कि रामकृष्ण परमहंस जी दक्षिणेश्वर मंदिर में पुजारी थे और मां काली की भक्ति में इतने ज्यादा लीन रहने लगे थे कि लोग उन्हें पागल कहना शुरू कर दिया था। यह उनकी भक्ति ही थी कि मां काली स्वयं दर्शन देती थी उन्हें और तो और उनके हाथ से भोजन भी करती थी, देखा जाए तो रामकृष्ण परमहंस जी के लिए मां काली ही उनकी सब कुछ थी। इसीलिए उन्होंने मां काली को अपनी मां के रूप में मान लिया एवं अपने हाथों से भोजन कराने का निर्णय कर समय-समय पर खिलाया करते थे। कई लोग तो ऐसा भी कहते हैं कि 1 दिन की बात है कुछ कारणवश जब रामकृष्ण परमहंस जी क्रोधित हो गए थे तो उन्होंने मां काली के ऊपर हाथ भी उठाया था। अब इस बात में कितनी सच्चाई है हम और आप क्या जाने परंतु उनके भक्तों से लेकर सभी लोग यह मानते थे क्योंकि मां काली का उन पर प्रेम बहुत ज्यादा था।

उनके छात्र:-

यूं तो रामकृष्ण परमहंस जी के कई छात्र थे परंतु उन सभी छात्रों में सर्वश्रेष्ठ एक ऐसा व्यक्ति था जिन्होंने मानव को मानवता का सही रूप में पाठ पढ़ाया था तथा आध्यात्मिकता के सभी गुणों को अपनाकर वह व्यक्ति सबसे अधिक ज्ञानी पुरुष बन गया था, वह व्यक्ति और कोई नहीं स्वामी विवेकानंद थे, जिनकी बुद्धि से लेकर नीतियां आज हमारे लिए ब्रह्मास्त्र के समान है जीवन जीने के लिए। विवेकानंद जी जब यह बात जान पाए कि एक ऐसा व्यक्ति है जो मां काली को अपने हाथों से खाना खिलाता है एवं उनका साक्षात दर्शन पाता है तो उनके मन में उनसे मिलने की बहुत सारी उत्साह जाग उठी। इन्हीं कारणवश वे सब कुछ छोड़ रामकृष्ण परमहंस के पास चले गए थे और जैसे ही रामकृष्ण परमहंस जी के पास स्वामी विवेकानंद पहुंचे तो स्वामी विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा कि पुत्र इतनी देर क्यों हो गई तुम्हें? कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा था। कितने साल हो गए अब तुम आए हो? देरी क्यों हो गई? इन सभी बातों से स्वामी विवेकानंद चकित हो गए थे क्योंकि अपने जीवन काल में उन्होंने उस व्यक्ति को प्रथम बार देखा था और देखते साथ ही वह व्यक्ति उन्हें ऐसी बातें कह रहा था मानो स्वामी विवेकानंद जी ने उसे वादा किया हो कि मैं आऊंगा तुम्हारे पास शिक्षा लेना। जब यह सारी बात रामकृष्ण परमहंस जी को पता चली, उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी के इन सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए केवल उन्हें बस छुआ था, स्वामी विवेकानंद जी को अलौकिक शक्ति एवं उनको उनका परिचय कि आखिर वह कौन है यह पता चला और हां उन्होंने ही वादा किया था रामकृष्ण परमहंस जी से कि “मैं आऊंगा तुमसे शिक्षा ग्रहण करने। तुम मानव को मानवता सिखाने योग्य और आध्यात्मिकता के सभी गुणों को अपनाएं रहो। मैं आऊंगा तुमसे शिक्षा लेने।” यह सब बातें जब स्वामी विवेकानंद जी को पता चली, वे बेहोशी की हालत में आ गए थे। जब उन्हें संपूर्ण रूप से होश आया तब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि वह कौन है और उनका जीवन का लक्ष्य क्या है। तब जाकर उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस जी से अध्यात्मिकता, मानववाद एवं सभी बिंदुओं का ज्ञान प्राप्त किया जिससे मानव को मानवता सिखाया जा सके, आध्यात्मिकता की ओर ले जाया जा सके एवं अलौकिक शक्ति का अनुभव कराया जा सके। इसके बाद ही स्वामी विवेकानंद भारत को एक नई दिशा, नैतिक विचार, मानवता एवं सभी रूप से गुणवान बनाने में लग गए। ऐसा भी कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद और कोई नहीं भगवान विष्णु के ही अवतार है जिनका इस जीवन में यह लक्ष्य है कि वह मानव को सही शिक्षा देकर मानवता का पाठ पढ़ाएं, जिसके लिए उन्हें रामकृष्ण परमहंस जैसा कोई शिक्षक चाहिए था। इसीलिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस जी के सपने में आकर उनसे कहा था कि तुम मुझे शिक्षा देने के काबिल बनो मुझे तुम्हारी जरूरत है मानवता को वापस लाने के लिए मुझे अवतार लेना होगा तभी जनकल्याण मुमकिन होगा। इसी कारण रामकृष्ण परमहंस जी शिक्षा देने लायक बने और स्वामी विवेकानंद जी का इंतजार करने लगी, आज के समय में रामकृष्ण परमहंस जी का सबसे बड़ा छात्र अगर कोई है तो वह है स्वामी विवेकानंद।

अपनी पत्नी से व्यवहार:-

ऐसा कहा जाता है कि भले ही रामकृष्ण परमहंस ने विवाह कर लिया था परंतु वह अपनी पत्नी के साथ भाई बहन की भांति हर व्यव्हार रखते थे। रामकृष्ण परमहंस ने अपने जीवन काल में एक बार भी अपनी पत्नी को नहीं छूआ परंतु वह उनसे बहुत प्रेम करते थे परंतु उनके लिए उस समय मां काली के इलावा कोई और अधिक प्रिय नहीं था। यूं समझिए रामकृष्ण परमहंस यह भूल चुके थे कि उनका विवाह हुआ है। वह मां काली के भक्ति में इतने ज्यादा मग्न रहने लगी थे कि उन्होंने अपने जीवन के सभी सुखों को भुला दिया था। उनके लिए केवल एक मात्र सुख का स्रोत मां काली ही थी जिन की भक्ति में लीन रहकर वह अपना जीवन बिताने लगे।

भक्ति:-

हमारे मानव जीवन में भक्ति से ऊंचा कर्म कोई हो ही नहीं सकता और अगर भक्ति की बात आती है तो रामकृष्ण परमहंस जी जैसा कोई भक्त नहीं हो सकता और ना ही उनके जैसा कोई भाग्यवान हो सकता है जिन्होंने स्वयं अपने हाथों से मां काली को भोजन कराया था। इतना भाग्यशाली होना इस मानव जीवन में असंभव है। हम सोच भी नहीं सकते इतनी बड़ी उपलब्धि, इतनी बड़ी सुख का आनंद रामकृष्ण परमहंस जी ने अपने जीवन काल में उठाया था। उनके जैसा भक्त बन पाना अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है क्योंकि मां काली जैसी क्रोध में डूबी हुई शक्ति को यह याद दिलाना कि वह मां भी है, यह हम मनुष्यों के द्वारा हो पाना असंभव सा है, परंतु इसको संभव बनाने में सक्षम रामकृष्ण परमहंस जी ही हुए हैं। ऐसे और भी कई भक्त हैं जिनको यह सुख मिला है परंतु रामकृष्ण परमहंस जी अपना एक अलग स्थान बनाए रखते हैं। भक्तों में उनकी भक्ति हमें यह सीख देती है कि जीवन में कोई भी लक्ष्य जितना भी बड़ा हो उसे पाने की सच्ची चाह अगर मन में हो तो कोई भी परिस्थिति आए जितने भी समस्याएं आए आप उस सफलता रूपी शांति को जिसे मोक्ष कहा जाता है प्राप्त कर ही लेंगे, बस उसके लिए आपको रामकृष्ण परमहंस जी जैसा अपने कार्य में भक्ति भाव लाना होगा क्योंकि भक्तों के लिए भक्ति से बड़ा और कुछ नहीं होता। उसी प्रकार अगर हम मनुष्यों के लिए कर्म से बड़ा कुछ ना हो तो हम भी वो वह इंसान बन जाएंगे जो भगवान विष्णु कई बार अवतार लेकर सिखाना चाहते थे।

उनकी मृत्यु:-

परमहंस जी की मृत्यु 16 अगस्त 1885 में 50 वर्ष की आयु में हुई थी। उनकी मृत्यु को लेकर यह कहा जाता है कि उनकी मृत्यु गले में कैंसर होने के कारण हुई थी। जब वह मृत्यु के अंतिम क्षण पर थे तो मां काली ने उन्हें अपनी गोद में सुला रखा था रामकृष्ण परमहंस जी असीम पीड़ा को सहन करते हुए अपनी मां से कह रहे थे “हे! मां बहुत दर्द हो रहा है, सहा नहीं जा रहा है। ये सब सुनकर ऐसा कहा जाता है कि मां काली शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत होकर भी एक मां की तरह बिलख बिलख कर रो रही थी क्योंकि वह भी जीवन चक्र के बंधन में बंधी हुई थी और इसी कारण वह अपनी संतान के लिए कुछ कर नहीं पा रही थी और अपने ही संतान को अपने ही गोद में मरता हुआ देख रही थी। रामकृष्ण परमहंस जी अंतिम सांस तक महाकाली को अपने बढ़ते दर्द की पीड़ा को बताते रहे और उनकी मां बेबस होकर बस उनको गोद में सुलाए बिलख-बिलख कर रोती रही। कुछ क्षण बाद ही रामकृष्ण परमहंस जी ने अपना देह त्याग दिया और मां काली उन्हें अपने संग स्वर्ग की ओर ले चली गई। इस प्रकार एक ऐसे व्यक्ति का हमारे धरती से जाना हो गया जिसने हमें स्वामी विवेकानंद जी जैसा सही रहा दिखाने वाला व्यक्ति दिया और तो और भक्ति के रस में डूबना सिखाया और जीवन जीने की अध्यात्मिकता एवं मानव को मानवता सिखाना जैसा कार्य किया। यह धरती जब तक है तब तक रामकृष्ण परमहंस जी की कथाएं सुनाई जाएगी और यह बताया जाएगा था एक व्यक्ति जिसने अपने हाथों से मां काली को भोजन कराया था।

हमारे जीवन में हम कई प्रकार के भावनाओं से घिरे रहते हैं, जिस कारण से हम उस लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच पाते जिसके लिए हमारा जन्म हुआ और इसी कारण भगवान भी दुखी रहते हैं कि मैंने इसे मानव जीवन दिया और यह उस बात को ना समझ कर अधर्म कर रहा है। मानवता में घटिया सोच डाल रहा है और तो और एकता भंग कर रहा है। रामकृष्ण परमहंस जी एक ऐसे प्रतीक है जिससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने जीवन के सही लक्ष्य को पहचानो और उसी में इतने ज्यादा डूब जाओ कि जब तक वह लक्ष्य तुम्हें प्राप्त ना हो जाए तब तक तुम्हारे लिए और कोई कार्य महत्वपूर्ण ना बन जाए। इन्हीं बातों के साथ अगर हम चल पड़े अपने जीवन की उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तो हमें भी भक्ति का वह रस प्राप्त होगा जिसकी प्राप्ति के लिए पहले के समय में ऋषि मुनि अपनी संपूर्ण जीवन लगा देते थे, रामकृष्ण परमहंस के विचारों को अपने जीवन में उतारने का अब समय आ गया है। नैतिक मनुष्य बन कर नैतिकता फैलाना एवं एकता की भावनाओं को उत्पन्न करना ताकि सभी आध्यात्मिकता की ओर बड़े एवं अलौकिक शक्तियों को महसूस कर पाए साथ ही साथ धर्म का निर्वाहन करें। यह सब सीख अगर हम रामकृष्ण परमहंस जी से ले सके तो हमारा जीवन भक्ति से भर जाएगा और हम साथ साथ मिलकर कलयुग में भी सतयुग ले आएंगे और इस धरती को स्वर्ग से भी सुंदर बना देंगे। बस हमें रामकृष्ण परमहंस जी की मातृभक्ति के उस रस को पी जाना है ताकि अपनी धरती को हम स्वर्ग से भी सुंदर बना सके जहां एक समय पर भगवान स्वयं आकर रहते थे। वही पुनः हमें दोहराना है, रामकृष्ण परमहंस जी जैसा हम सभी को बन जाना है। तभी जाकर इस धरती में भी स्वर्ग की भांति सौंदर्य आएगा और मानव-मानव का और जीव-जंतुओं का साथी बन कर रह पाएगा। ना किसी से बैर ना किसी से कुछ लेना ना देना बस प्रेम ही प्रेम हर स्थान पर, क्योंकि अगर रामकृष्ण परमहंस जी जैसा बनने का प्रयास करते हुए हम स्वामी विवेकानंद जी जैसा पुरुष देख सकते हैं तो अगर हम भी उन्हीं बोले गए रास्तों पर चलकर उन्हीं अध्यात्मिकता का ज्ञान प्राप्त कर पाएंगे, और इस धरती को सुंदर बनाने में जितना योगदान स्वामी विवेकानंद ने दिया था अगर हम सब भी उनकी भांति रामकृष्ण परमहंस जी से शिक्षा लेकर करने लगे तो वह दिन दूर नहीं जब कलयुग में भी सतयुग आ जाएगा और यह धरती स्वर्ग से भी सुंदर बन जाएगी।

धन्यवाद।